Vol. 3, Issue 5, Part L (2017)
श्री परमानन्द शास्त्री के ‘जनविजयम्’ में जनता
श्री परमानन्द शास्त्री के ‘जनविजयम्’ में जनता
Author(s)
डॉ० वन्दना रूहेला
Abstract
किसी भी राष्ट्र के लोकतन्त्र में अन्यायपूर्ण शासन को उखाड़ फेंकने की सम्पूर्ण शक्ति जनता में निहित होती है। शासक की ‘अधिनायकवादी-प्रवृत्ति’ जनता को कदापि स्वीकार नहीं होती है। 25 जून 1975 का काल भारत में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा जनता पर बलपूर्वक आरोपित आपातकाल का समय था। श्रीमती इन्दिरा गांधी देश में चल रहे विभिन्न छात्र आंदोलनों जैसे – गुजरात नवनिर्माण आंदोलन, जे०पी० आंदोलन, रेलवे हडताल को इसका मुख्य कारण माना था1 परन्तु जनता लोकतंत्र के मर्म को भलीभांति पहचानती है। अत एव निर्वाचन प्रचार के समय सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों ही दलों के तर्कों को सुनकर मनन करती है। जनता सदैव मतदान के प्रति जागरूक होती है वह सभी पक्षों पर विचारपूर्वक ही मत देने के विषय में निर्णय करती है। प्रस्तुत शोधपत्र का विषय भी यही है। कविवर परमानन्द शास्त्री का ‘जनविजयम्’ भारतीय जनता की शक्ति को केन्द्र में रखकर रचा गया महाकाव्य है। राष्ट्र में लगे आपातकाल की भयावह स्थिति पर भारतीय जनमानस ने किस प्रकार प्रतिक्रिया दी, इसी विषय को प्रस्तुत शोधपत्र में दर्शाया गया है।