Vol. 8, Issue 10, Part D (2022)
आदिवासी साहित्य सैद्धांतिकी का विश्लेषणात्मक अध्ययन और इसका सम्भाव्य प्रारूप
आदिवासी साहित्य सैद्धांतिकी का विश्लेषणात्मक अध्ययन और इसका सम्भाव्य प्रारूप
Author(s)
डॉ. विनीता रानी
Abstract
साहित्य समाज का नव सृजन करता है। समाज को नयी दशा व दिशा प्रदान करता है। बीसवीं सदी के अंत में भारत में नए सामाजिक आंदोलन दृष्टिगत हुए। दलितों, स्त्रियों, आदिवासियों व जनजातीय समुदायों ने नई एकजुटता के माध्यम से अपने प्रति शोषण का विरोध किया और संपूर्ण समुदाय की मुक्ति हेतु सामूहिक अभियान चलाया। सामाजिक राजनीतिक आंदोलन के साथ-साथ साहित्यिक आंदोलन भी इस अभियान का मुख्य हिस्सा था। दलित विमर्श और स्त्री विमर्श इसी का परिणाम है। आज़ादी के पश्चात् प्रकाश में आए अस्मितावादी विमर्शों में दलित विमर्श एवं स्त्री विमर्श के बाद सबसे नया विमर्श आदिवासी विमर्श है। अब आदिवासी चेतना से युक्त आदिवासी साहित्य हिंदी साहित्य पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। आज आदिवासी साहित्य हिंदी के अलावा लगभग 100 आदिवासी भाषाओं में प्रचुर मात्रा में लिखा जा रहा है। दशकों के संघर्ष और प्रतिरोध के पश्चात् आज आदिवासी साहित्य को स्वायत्त विषय के रूप में केन्द्रीय परिधि में लाया जा रहा है, आदिवासी समाज व साहित्य पर निरन्तर पर चर्चा की जा रही है। किंतु आदिवासी समाज की तरह आदिवासी साहित्य का संघर्ष आज भी जारी है। आज भी आदिवासी साहित्य अनेक समस्याओं एवं चुनौतियों से जूझ रहा है। इसका प्रमुख कारण आदिवासी समाज, जीवन से बाहरी समाज का अपरिचय और उपेक्षापूर्ण रवैया है। आदिवासी समाज से संवाद करने का आदिवासी साहित्य महत्त्वपूर्ण ज़रिया हो सकता है, बशर्तें उसका सही मूल्यांकन किया जाये इस हेतु इसके बुनियादी तत्वों की समझ होना अपरिहार्य है। आदिवासी साहित्य की उचित धारणाएँ एवं मापदण्ड होने आवश्यक हैं।
How to cite this article:
डॉ. विनीता रानी. आदिवासी साहित्य सैद्धांतिकी का विश्लेषणात्मक अध्ययन और इसका सम्भाव्य प्रारूप. Int J Appl Res 2022;8(10):238-245.