Abstractजीवन-मूल्य का अर्थ जीवन में गुणों की अवधारणा से है जिनसे जीवन समुन्नत एवं कल्याणमय बनता है। जीवन-मूल्य ही जीवन को अर्थवान् एवं उपयोगी बनाते हैं भारतीय संस्कृति के अनुसार "धर्म" का अर्थ है धारण करना “धारणात् धर्मः” अर्थात जिसे हृदय में धारण किया जाये वही "धारणात् धर्म" है जिससे मानव अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ है। यथा नीति वचनों के अनुसार आहार-निद्रा-भय-मैथुन, मानव तथा अन्य प्राणियों में समान हैं, "धर्म" ही मानव को अन्य प्राणियों से अलग करता है-
“आहारनिद्राभयमैथुनञ्च,
सामान्यमेतद् पशुभिर्नराणाम्
धर्मो हि तेषामधिको विशेषो
धर्मेण हीनः पशुभिर्समानाः।”1
जीवन मूल्य का अभिप्राय है जीवन को गुण गरिमा से मंडित बनाना जिससे वह सार्थक बन सके। धर्मशास्त्रों में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं। यथा-
घृतिक्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्यासत्यमक्रोधं दशकं धर्मलक्षणम्॥2
धर्म के दस लक्षण (धृति-क्षमा-दम-अस्तेय, शौच-इन्द्रिय निग्रह, घी-विद्या-सत्य और अक्रोध) ही ऐसे मूल्यवान हैं जिन्हें धारण करना जीवन को श्रेष्ठ और उन्नत बनाना है। आदिकवि वाल्मीकि ने रामायणम् की रचना कर इन्हीं जीवन मूल्यों को जीवन में चरितार्थ करने की प्रेरणा दी है।