Vol. 3, Issue 7, Part N (2017)
गद्य में व्यंगात्मक विवेचना गद्य में व्यंगात्मक विवेचना
गद्य में व्यंगात्मक विवेचना गद्य में व्यंगात्मक विवेचना
Author(s)
डा. श्रीधर हेगडे
Abstractव्यंग्य मुख्यतया आधुनिक हिन्दी साहित्य की उल्लेखनीय घटना हैं। बीस्वीं शताब्दी के हिन्दी गद्य में अनेक शैलियाँ, जीवन दृष्टियों और विधाओं का प्रादुर्भाव हुआ और विकास हुआ। हिन्दी साहित्य जगत मैं व्यंग्य के अंतर्गत हास्य रस को आत्मानन्द की अनुभूति का माध्यम माना गया हैं। वास्तव में व्यंग्य के द्वारा लेखक सदैव हँसी के माध्यम से दण्ड देना चाहता हैं। अतः स्वाभावतः उनमें कुछ चिडचिडापन आ जाता हैं। प्रस्तुत शोध पत्र में हिंदी साहित्य में व्यंग्य के स्वरुप पर विचार किया गया हैं।
How to cite this article:
डा. श्रीधर हेगडे. गद्य में व्यंगात्मक विवेचना गद्य में व्यंगात्मक विवेचना. Int J Appl Res 2017;3(7):983-986.