Vol. 7, Issue 1, Part F (2021)
बाल्यावस्था में सामाजिक व्यवहारों के विकास में पारिवारिक कारकों की भूमिका का प्रभाव एक अध्ययन
बाल्यावस्था में सामाजिक व्यवहारों के विकास में पारिवारिक कारकों की भूमिका का प्रभाव एक अध्ययन
Author(s)
अर्चना राय
Abstractबाल्यावस्था में व्यक्तित्व विकास, सामाजिक एवं सांवेगीक विकास में पारिवारिक वातावरण एवं शिक्षा का अहम योगदान है। अनेक मुख्य कारकों में से पारिवारिक वातावरण की सशक्त एवं सुदृढ़ समाज व राष्ट्र निर्माण में सर्वोपरि महत्व करता है। बाल्यावस्था सामाजिक विकास की महत्वपूर्ण अवस्था है। इस अवस्था को दो भागों में विभाजित किया गया है- पूर्व बाल्यावस्था एवं उत्तर बाल्यावस्था शुरूआत 2 से 6 वर्ष की आयु पूर्व बाल्यावस्था कहलाती है जिसमें बच्चे की आत्मनिर्भरता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। यह अवधि पाठशाला में प्रवेश की होती है। इसलिए इसे ‘स्कूल पूर्व आयु’ भी कहा जाता है और ‘टोली पूर्व आयु’ भी कहा जाता है। इस अवधि में बालक सामाजिक व्यवहारों के आधारभूत तत्वों को सीखना आरंभ करता है। उत्तर बाल्यावस्था का आरंभ 6 वर्ष की आयु से होता है तथा वय:संधि के प्रारंभ अर्थात् 12 वर्ष तक चलता रहता है। बालक स्कूल में प्रवेश पा चूका रहता है। इस अवस्था को ‘टोली की अवस्था’ भी कहा जाता है। इसे ‘प्रारम्भिक स्कूल अवस्था’ भी कहा जाता ही। अतः जीवन के अनेक पक्षों के विकास की दृष्टि से यह आयु अत्यंत महत्व रखती है। प्रस्तुत अध्याय के अंतर्गत बाल्यावस्था में होने वाले सामाजिक, सांवेगिक एवं व्यक्तित्व विकास संरूपों का क्रमशः वर्णन किया गया है।
How to cite this article:
अर्चना राय. बाल्यावस्था में सामाजिक व्यवहारों के विकास में पारिवारिक कारकों की भूमिका का प्रभाव एक अध्ययन. Int J Appl Res 2021;7(1):476-478.