Vol. 3, Issue 12, Part G (2017)
ऐसी भक्ति करे रैदासा
ऐसी भक्ति करे रैदासा
Author(s)
डाॅ. देवी प्रसाद
Abstract
हिन्दी साहित्य में भक्तिकालीन साहित्य का विषेष महत्त्व है। इस काल को हिन्दी साहित्येतिहास में स्वर्णयुग के नाम से जाना जाता है। इस काल में निर्गुण संतों का अपना महत्त्व है। संत साहित्य में मानवता का उपदेष दिया गया है। रविदास जी ऐसे संत हैं, जो अपनी सीधी-सपाट भाषा में मानव को समतावादी समाज के निर्माण का संदेष देते हैं। रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु स्वभाव के थे। दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव था। रविदास जी की मान्यता है कि यदि व्यक्ति के हृदय में भगवान के प्रति सच्ची और सच्चा प्रेम नहीं है, तो मूर्ति पूजा करना, मंदिर जाकर पूजापाठ करना ढकोसला मात्र है। रैदास के वाणी में धर्म के विविध आयाम देखने को मिलते हैं। कबीर, रविदास आदि निर्गुण संतो ने ईष्वर को निर्गुण, निराकार बताकर भक्ति का सरल और सहज मार्ग प्रशस्त किया, जिसमें न हठ योग साधना थी, न हीं धार्मिक क्रिया, कर्मकाण्ड, पूजा-पाठ या व्रत-उपवास का विधान। निर्गुण पंथियों का यह मार्ग शुद्ध भक्ति का मार्ग था, जो नाम भक्ति या प्रेमा व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हुआ। संत रविदास की भक्ति इसी रूप में है, जिसमें सहज-सरल रूप में परमात्मा का स्मरण किया जाता है और भक्त अपने पूर्ण समर्पण के साथ अपने आराध्य की आराधना करता है।
How to cite this article:
डाॅ. देवी प्रसाद. ऐसी भक्ति करे रैदासा. Int J Appl Res 2017;3(12):413-417.