Vol. 3, Issue 4, Part L (2017)
संस्कृत का भाषावैज्ञानिक एवं दार्शनिक महत्त्व
संस्कृत का भाषावैज्ञानिक एवं दार्शनिक महत्त्व
Author(s)
डॉ. सर्वजीत दुबे
Abstract
संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतमा भाषा होने के साथ.साथ वैज्ञानिकता एवं दार्शनिकता से परिपूर्ण है। आधुनिक काल में ब्रिटिश विद्वानों को जब इस प्राचीनतम भाषा का ज्ञान हुआ तो उन्हें संस्कृत में विश्व की अन्य प्राचीन एवं आधुनिक भाषाओं का अक्षय स्रोत दिखने लगा। इससे तुलनात्मक भाषाशास्त्र का जन्म हुआ जिसके कारण इस भाषा ने श्किस भाषा से क्या लिया और क्या दियाश् विषय पर अनुसंधान शुरू हुआ। संस्कृत भाषा से गहरा परिचय प्राप्त होने पर विद्वानों को पता चला कि वैखरी रूप में व्यक्त होने के पहले वाणी परावाक् पश्यंती और मध्यमा से गुजरकर वैखरी तक पहुंचती है। भाषा वैज्ञानिकों को यह भी पता चला कि अन्य भाषाएं जहां सिर्फ दूसरों के साथ ही जोड़ती हैंए वहां संस्कृत भाषा व्यक्ति को स्वयं के आंतरिक जगत से भी जोड़ती है।
How to cite this article:
डॉ. सर्वजीत दुबे. संस्कृत का भाषावैज्ञानिक एवं दार्शनिक महत्त्व. Int J Appl Res 2017;3(4):917-921.