Vol. 3, Issue 8, Part D (2017)
“जनसामान्य और संस्कृत भाषा”
“जनसामान्य और संस्कृत भाषा”
Author(s)
डॉ. सर्वजीत दुबे
Abstract
भारतीय संस्कृति संस्कृत पर आश्रित है। इस कथन का आधार यह है कि संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रंथों में जीवन के सभी क्षेत्रों से संबंधित सूक्ष्म और विस्तृत ज्ञान मिलता है। लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार की विद्याओं से संपन्न संस्कृत भाषा को सिर्फ एक वर्ग विशेष की भाषा होने का दुष्प्रचार किया जाए तो यह विशेष चिंता एवं चिंतन का विषय होना चाहिए। संस्कृत के लिए देववाणी का प्रयोग किया गया, इसका मतलब कदापि यह नहीं लेना चाहिए कि यह जनवाणी नहीं थी। ब्राह्मण ग्रंथों, पुराणों, महाकाव्यों, बौद्ध साहित्य, विदेशी यात्रियों के विवरणों के साथ भाषा वैज्ञानिकों के भी पर्याप्त प्रमाण है कि संस्कृत लोक-व्यवहार की भाषा थी। किंतु कालक्रम से साहित्यिक रूप वाले संस्कृत और व्यावहारिक रूप वाले संस्कृत में अंतर आ गया। साहित्यिक संस्कृत की शुद्धता और विषय गंभीरता के कारण संस्कृत को देववाणी कहा जाने लगा लेकिन व्यावहारिक संस्कृत के जनसामान्य में उपयोग होने से इस भाषा का अन्य रूप विकसित होने लगा जिससे प्राचीन और आधुनिक कई भाषाएं अस्तित्व में आईं। यदि आज संस्कृत बोलचाल की भाषा नहीं है तो सामान्य जन को संस्कृत भाषा से जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किया जाना चाहिए; यदि सामान्य जन संस्कृत भाषा नहीं सीख पाते हैं तब भी संस्कृत में निहित ज्ञान सामान्य लोगों के लिए उनकी बोलचाल की भाषा में उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाना चाहिए।
How to cite this article:
डॉ. सर्वजीत दुबे. “जनसामान्य और संस्कृत भाषा”. Int J Appl Res 2017;3(8):263-266.