ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF
संस्कृत वांग्मय में पर्यावरण शब्द नहीं है किंतु प्रकृति के विभिन्न रूपों के प्रति ऋषि चेतना अत्यंत आदर के साथ भरी हुई थी। विभिन्न देवों और देवियों के रूप में प्रकृति की उपासना जिस रूप में प्राचीन संस्कृत के ग्रंथों में मिलती है, उससे प्रकृति के साथ उनके गहरे तादात्म्य और संवेदना का पता चलता है। अतःपर्यावरण के प्रदूषण का कोई सवाल ही नहीं उठता था। औद्योगीकरण के कारण और प्रकृति के प्रति उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण अपनाए जाने के कारण आज ऐसा लगता है कि प्रकृति मनुष्य से बदला ले रही हैं। यदि प्रकृति के प्रति मनुष्य का दृष्टिकोण सम्यक् और संवेदनशील नहीं हो तो कोई भी सभ्यता और संस्कृति सुविधापूर्ण तो हो सकती है किंतु सुखी नहीं।