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पुरुषार्थ चतुष्टय में मोक्ष को परम पुरुषार्थ माना
गया है। धर्मानुकूल अर्थ और काम के सेवन के बाद अंतिम मंजिल मोक्ष ही है। विश्व की
किसी भी भाषा में 'मोक्ष' जैसा शब्द नहीं है। स्वर्ग से ऊपर पश्चिम की दृष्टि नहीं
जाती। भारतीय दृष्टि बहुत ही गहरी और सूक्ष्म है। जीवन को गहराई से देखने के बाद व्यक्ति
यहां बार बार आना नहीं चाहता। अतः आवागमन से मुक्ति की कामना वाले भारतीय ऋषियों ने
मोक्ष की अवधारणा दी। वेदांत ने इस अवधारणा को बहुत ही व्यापक और तार्किक रूप दिया।