Vol. 9, Issue 11, Part B (2023)
वैदिक चिंतन में प्रकृति-मानव संबंध
वैदिक चिंतन में प्रकृति-मानव संबंध
Author(s)
अमित कुमार, कृष्ण कुमार शर्मा
Abstractआज ‘कंकरीट के जंगलों’ पर विराजमान मानव के प्रकृति के साथ संबंध असंतुलित हो गये हैं, जिनमें पुनः संतुलन स्थापित करना, इस पर चिंतन करना तथा पृथ्वी के सौन्दर्य को बनाये रखना नितांत आवश्यक है। भारतीय चिंतन मनुष्य को प्रकृति या जगत् की वृहत्तर योजना का एक भाग मानते हुए मानव-प्रकृति सहकार और सह-अस्तित्व पर बल देता है। जगत् का अस्तित्व प्राकृतिक शक्तियों और प्राणियों की सहजीविता के सिद्धांत पर ही टिका हुआ है। इसी के अनरूप यहाँ मनुष्य ने प्रारंभ से ही पर्यावरण एवं इसके तत्त्वों की महत्ता को जानकर प्रकृति के साथ अपना तादात्म्य बनाये रखा। वैदिक साहित्य में प्रकृति-मानव संबंधों का विशद विवेचन मिलता है। ऋग्वेद से प्रारंभ करके पश्चात्वर्ती वेद संहिताओं, यथा यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद और इनसे संबंधित ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् ग्रंथों में मानव और प्रकृति, मानव और पृथ्वी के अन्यान्योश्रित संबंधों पर आधारित अनेक उद्धरण मिल जाते हैं। वैदिक चिंतन में पारिस्थितिक एवं पर्यावरण संतुलन का व्यापक दृष्टिकोण निहित है और प्राकृतिक तत्त्वों के लिये यत्र-तत्र कल्याणकारी एवं संरक्षणकारी भाव परिलक्षित होते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से अनुप्राणित वैदिक दर्शन प्रकृति के कण-कण के साथ आत्मीय संबंधों का पोषक रहा है। संक्षेप में, मनुष्य और प्राकृतिक तत्त्वों में साहचर्य का विलक्षण भाव वैदिक वाङ्मय का सार है। आज जब वैश्विक संदर्भ में व्यक्तिवादी मूल्यों पर आधारित भौतिकवादी-भोगवादी संस्कृति से पारिस्थितिक संतुलन चरमराने लगा है और जैव विविधता के लिये खतरा उत्पन्न हो गया, तो ऐसे में वैदिक चिंतन में अभिव्यक्त प्रकृति-मानव के पारस्परिक प्रगाढ़ संबंधों, प्रकृति की मातृरूपेण छवि एवं प्राकृतिक तत्त्वों हेतु संरक्षणकारी दृष्टिकोण पर मंथन करने और इसे व्यावहारिक जीवन में आत्मसात् करने से पर्यावरण संकट के निवारण के लिये सकारात्मक दृष्टि प्राप्त होगी तथा मानव जाति अपने वास्तविक हितों की ओर अग्रसर हो सकेगी।
How to cite this article:
अमित कुमार, कृष्ण कुमार शर्मा. वैदिक चिंतन में प्रकृति-मानव संबंध. Int J Appl Res 2023;9(11):110-112.