Vol. 9, Issue 10, Part C (2023)
प्रेमचन्द के उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं का निरूपण
प्रेमचन्द के उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं का निरूपण
Author(s)
प्रो0 रश्मि कुमार
Abstractप्रेमचन्द के पात्र भारतीय जनता की सांस्कृतिक विशेषताओं को रखते हुए सच्चे भारतीय हैं, तो दूसरी ओर साधारण मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण मानव भी हैं। पारस्परिक सहानुभूति, ईष्र्या, द्वेष, प्रेम आदि मानव-मात्र के चिरन्तन गुणों से युक्त उनके पात्र कभी-कभी विश्व-उपन्यासकारों के उत्कृष्ट पात्रों के समान सार्वलौकिक बन जाते हैं। ‘गोदान‘ के पात्रा सचमुच सजीव मनुष्य हैं।प्रेमचन्द ने विधवा समस्या का चित्रण प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम और वरदान उपन्यास में किया है। आर्थिक मुसीबत के कारण ही पे्रम की समस्या उपस्थित होती है और आर्थिक संकट के कारण ही मनुष्य के रुप में’ हम देखते है कि बाप बेटी को बेचता है ओर ससुर बहु को बेचने के लिए प्रस्तुत हो गया है। पे्रमचन्द के ‘गबन’ उपन्यास में भी अनमेल विवाह, वेश्या समस्या तथा विधवा समस्या अंकित है। ‘पे्रमाश्रम’ में राजनीतिक समस्या, हिन्दू-मुस्लिम एकता की समस्या का चित्रण है। ‘रंगभूमि’ में धनी-गरीब, किसान जमींदार, पंूजीपति-मजदूर के बीच संघर्ष की कथा है। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम, सिख, साइ सभी को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया है। कायाकल्प’ में हिन्दू-मुस्लिम वेंमनस्य तथा सांप्रदायिक समस्या का निरुपण किया है। ‘कर्मभूमि’ में हरिजन उद्धार, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य तथा नारी जागरण कि समस्या को उठाया है। दादा कामरेड, देशद्रोही आदि में मिल मालिक तथा मजदूर का संघर्ष है। इसके साथ साथ पे्रम की समस्या तथा विधवा समस्या का चिञिण है साम्प्रदायिक समस्या का चित्रण ‘झूठा सच’ में है, विभाजन पूर्व और विभाजन के बाद की रिथति को लेकर लिखी गई कथा द्वारा तत्कालीन परिरिथति का सजीव चित्रण दिया गाया है।
How to cite this article:
प्रो0 रश्मि कुमार. प्रेमचन्द के उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं का निरूपण. Int J Appl Res 2023;9(10):112-115.