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International Journal of Applied Research
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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 9, Issue 11, Part C (2023)

प्रेम की अवधारणा

प्रेम की अवधारणा

Author(s)
डाॅ0 विमलेन्दु कुमार विमल
Abstract
प्रेम वरदान की तरह है। सच्चा प्रेमी वह है, जो प्रेम को देय समझे न कि इसे पाने का पर्याय मान बैठे! प्रेम जैसा भी हो, अकारण नहीं होता, उसके पीछे पूर्व जन्म के कर्म विद्यमान रहते हैं।
प्रेम की सेज पर वासना का भोग ही मनुष्य को उपासना की ओर उन्मुख करता है, जो काम को राम तक ले जाता है।
प्रेम का धरातल भौतिकता है-अलौकिकता नहीं! नर-नारी के एंेद्रिक सुख के ‘चरमक्षणों’ की परिणति अतींद्रिय सत्ता की उपलब्धि नहीं हो पाती।
वासना षाष्वत ऊर्जा है। इसी वासना के कारण हम प्रेम करते हैं प्रेम का बीज स्वतः अंकुरित होता है। वह हमेषा मौन रहता है। उसे मुखरता देती है-वासना, जो स्वयं में ‘चरैवेति’ का संदेष है।
कामवासना को उत्कर्ष तक ले जाने वाला बस एक मात्र प्रेम है। मानव-प्रेम में प्रेम का अवतरण मानव-मन का आध्यात्मिक आरोहण ही है। यह उदात्त प्रेम वासनाजनित प्रेम की ही निष्पत्ति है।
Pages: 166-170  |  295 Views  168 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ0 विमलेन्दु कुमार विमल. प्रेम की अवधारणा. Int J Appl Res 2023;9(11):166-170.
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