Vol. 10, Issue 2, Part B (2024)
स्त्री शिक्षा विषयक बहसें और हिंदी पत्रिकाएं
स्त्री शिक्षा विषयक बहसें और हिंदी पत्रिकाएं
Author(s)
रीमा यादव
Abstract
’अब बालिका शिक्षा ग्रहण, हित पाठशाला दीजिए।
अध्यापिकाएं सच्चरित्रा, नियत सब मिलि कीजिए।।
सुख से पढ़ें बहिनें सभी, विचलित न हों निज धर्म से
पर शारदा के मर्म सह, बातों को जाने कर्म से।1
सारांश स्त्री शिक्षा के संबंध में उपर्युक्त पंक्तियां अगस्त 1909 ई. में इलाहाबाद से श्रीमती यशोदा देवी के संपादन में प्रकाशित ’स्त्रीधर्म शिक्षक’ के प्रवेशांक में ’बालिका प्रताप’ शीर्षक से श्रीमती शारदा कुमारी, नवगछिया भागलपुर ने लिखी है। यहां यह ध्यान देने की बात है कि स्त्री शिक्षा के मामले में स्त्री द्वारा निकाली गई पत्रिका में कोई और नहीं बल्कि एक स्त्री लिख रही है। ये तीनों घटनाएं हमें सोचने का अवसर देती हैं, तत्कालीन समाज में महिलाओं की स्थिति से अवगत कराती हैं। यह सच है कि भारतीय समाज में आज महिलाओं की स्थिति जो है वह आज के सौ वर्ष पूर्व नहीं थी, उससे पूर्व की स्थिति और भी चिंताजनक थी। कहा जाता है कि समाज समय के साथ-साथ चलता है। समय के साथ चलने का अर्थ, आगे बढ़ना है और इस बढ़ने में अनेक घटनाएं, सोच, बाधाएं, रूढ़ियां छूटती हैं और टूटती भी हैं। सामंती व्यवस्था और सोच के टूटने में आधी आबादी की सामाजिक, शैक्षिक उन्नति है। इस उन्नति में ही देश की उन्नति है। ’सरस्वती’ 1912 के अंक में संयुक्त प्रांत में ’स्त्री शिक्षा की अवस्था’ शीर्षक लेख में पंडित रामनारायण मिश्र लिखते हैं, “हमारे देश में जागृति के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। लोगों में विद्योन्नति की लालसा क्रमशः उत्पन्न हो रही है। अनेक विद्याविषयक सभाएं और अनेक नई-नई पाठशालाएं खुलती जाती हैं। सरकार भी लाखों रुपया शिक्षा प्रचार के लिए व्यय कर रही है। महाजनों, जमीदारों और राजा-महाराजाओं की रुचि भी विद्यादान की ओर बढ़ती जाती है। पर जो कुछ हो रहा है प्रायः बालकों के लिए, बालिकाओं की सुधि लेने वाले अभी थोड़े ही हैं।“2 यह अंतर सामाजिक विषमता का है जिसे शिक्षा ही पाट सकती है।
How to cite this article:
रीमा यादव. स्त्री शिक्षा विषयक बहसें और हिंदी पत्रिकाएं. Int J Appl Res 2024;10(2):123-125.