Vol. 10, Issue 3, Part C (2024)
विश्व शांति, सद्भाव और सामंजस्य: भगवद् गीता के अनुसार
विश्व शांति, सद्भाव और सामंजस्य: भगवद् गीता के अनुसार
Author(s)
Jyotsnaa G Bansal
Abstract
यह शोध पत्र भगवद् गीता, जो वैदिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, की गहन शिक्षाओं का अध्ययन करता है ताकि विश्व शांति, सद्भाव और सामंजस्य की अवधारणाओं को समझा जा सके। वैदिक संस्कृति और धर्मग्रंथों में विश्व शांति और सामंजस्य की अवधारणा एक महत्वपूर्ण और सार्वकालिक सिद्धांत है। भगवद् गीता, महाकाव्य महाभारत की कथा में समाहित, अर्जुन और उनके सारथी और आध्यात्मिक मार्गदर्शक भगवान कृष्ण के बीच संवाद के रूप में प्रस्तुत होती है और दार्शनिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह पत्र यह समझने का प्रयास है कि कैसे गीता की शिक्षाएं अपनी ऐतिहासिक सीमा से परे जाकर आधुनिक वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में शांति और सामंजस्य के लिए कालातीत ज्ञान प्रदान करती हैं। भगवद् गीता की शिक्षाएं, हालांकि एक विशिष्ट ऐतिहासिक युग में निहित हैं और ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का विवरण प्रस्तुत करती है, तथापि आधुनिक विश्व शांति की खोज के लिए प्रासंगिक हैं। इस शोध पत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भगवद् गीता की शांति, सद्भाव और सामंजस्य से संबंधित प्रमुख शिक्षाओं का विश्लेषण कर एक अनूठा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इनमें धर्म (न्यायपूर्ण कर्तव्य), कर्म (फल की आसक्ति के बिना कार्य) और योग (आध्यात्मिक अभ्यास का मार्ग) की अवधारणाएं शामिल हैं। इस पत्र के माध्यम से हम जानेंगे कि कैसे ये सिद्धांत व्यक्तिगत आंतरिक शांति को बढ़ावा देते हैं, कैसे आत्म-ज्ञान और आत्म-नियंत्रण सामंजस्य की कुंजी के रूप में सहायक है, जो व्यापक विश्व शांति को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। ये शिक्षाएँ हालांकि प्राचीन हैं, तथापि आधुनिक संघर्षों, पर्यावरणीय संकटों और सामाजिक असंतुलन जैसे समकालीन वैश्विक चुनौतियों को संबोधित करने में और शांतिपूर्ण वातावरण को बढ़ावा देने में गहन प्रासंगिकता रखती हैं। वैदिक ग्रंथों, विशेषकर श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित शांति, सद्भाव और सामंजस्य के सिद्धांत, व्यक्तिगत स्तर से लेकर वैश्विक स्तर तक मानवता के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस शोधपत्र में विश्व शांति की दिशा में इन सिद्धांतों के महत्व का विश्लेषण किया गया है।