Vol. 3, Issue 12, Part B (2017)
’’चेरि छाँडि न होइब रानी’’
’’चेरि छाँडि न होइब रानी’’
Author(s)
वरूण मिश्र
Abstractश्रीराम, ताड़का सुबाहु को मार, अहिल्या का उद्धार कर, जनकपुर पहुंच सहस्त्रार्जन को मारने वाले, क्षत्रियों के शत्रु परशुराम का मान मर्दन कर धनुष तोड़ सीता को ही नहीं वरन भरत, लक्ष्मण, शत्रुघन का भी व्याह कराके अयोध्या लौट आते है, मानस का प्रथम सेपान समाप्त हो जाता है।
मंथरा का चित्र बनाते समय तुलसी ने सारा पांडित्य उडेल दिया- मंथरा विध्वंसात्मक बुद्धि की श्रेष्ठतम कलाकार के रूप में मृदु बोलने वाली, चाल लचकदार, स्वभाव सरल, परन्तु अन्तः करण चाटुकारिता से ओत प्रोत है। वह मुंह बोली, कैकेयी की प्रबल हित चिन्तक के रूप में प्रगट होती है।
How to cite this article:
वरूण मिश्र. ’’चेरि छाँडि न होइब रानी’’. Int J Appl Res 2017;3(12):105-107.