Vol. 2, Issue 12, Part L (2016)
हिन्दी साहित्य पर बौद्ध-धर्म-दर्शन का प्रभाव
हिन्दी साहित्य पर बौद्ध-धर्म-दर्शन का प्रभाव
Author(s)
डाॅ॰ राम बालक राय
Abstract
भारतीय वाङ्मय में उपजीव्य काव्य के रूप में क्रमशः राम, कृष्ण और बुद्ध इन तीन महापुरुषों के जीवन-चरित्र एवं इनसे सम्बन्धित पात्रों को आधार बनाकर लिखे गये ग्रन्थ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। राम और कृष्ण की तुलना में भगवान् बुद्ध एवं उनसे सम्बन्धित पात्रों या स्थलों को आधार बनाकर लिखे गये ग्रंथ अपेक्षाकृत कम हैं, किन्तु वे अनुपेक्षणीय नहीं है। संस्कृत-साहित्य में अपभं्रश -अपभंश-साहित्य में विमल सूरि एवं स्वयंभू की रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। इसके बावजूद यदि भारत को आधुनिक भाषाओं के साहित्य में बुद्ध या इनसे सम्बन्धित पात्रों का आधार बनाकर रचनाएँ नहीं की गईं, तो इसका कारण बुद्ध एवं उनसे सम्बन्धित पात्रों की चारित्रिक उदात्तता का अभाव नहीं, अपितु बौद्ध-धर्म के साम्प्रदायिक ग्रंथों में किये गये मनमाने हेर-फेर हैं। भगवान् बुद्ध ने अपने संचरण-क्षेत्रों में जब और जिस भाषा में उपदेश किया, उसका बहुत प्रामाणिक स्वरूप उपलब्ध नहीं होता। भगवान् बुद्ध के महाप्रयाण के कुछ सौ वर्षों बाद संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश इन भाषाओं के जानकार इनके पंडित शिष्य एकत्र हुए और इन लोगों ने भगवान् बुद्ध के उपदेशों को अपनी-अपनी भाषाओं में प्रस्तुत किया। भगवान् बुद्ध के उपदेशों को लिपिबद्ध एवं ग्रंथबद्ध करने में सम्राट् अशोक का योगदान सर्वोपरि माना जाता है, क्योंकि जो सम्राट् अशोक प्रारंभ में अपनी प्रबल रक्त-पिपासा और साम्राज्य-विस्तार की अदम्य लालसा के कारण अपने व्यवहारों से ‘चंडाशोक’ कहलाता था, वही सम्राट् अशोक परवर्ती काल में भगवान् बुद्ध का शिष्य बनकर और शान्ति का तथाकथित उपासक बनकर ‘देवानांप्रिय प्रियदर्शी अशोक’ की उपाधि से अलंकृत हुआ। भारत के विभिन्न भागों में ही नहीं, भारत से बाहर श्रीलंका, वर्मा, स्याम, मलाया, चीन, जापान-जैसे समीपवर्ती अन्य देशों मंे भी इन्होंने धर्मदूत भेजे एवं भगवान् बुद्ध के उपदेशों का प्रचार-प्रसार कराया। [1]
How to cite this article:
डाॅ॰ राम बालक राय. हिन्दी साहित्य पर बौद्ध-धर्म-दर्शन का प्रभाव. Int J Appl Res 2016;2(12):825-827.