Vol. 2, Issue 1, Part L (2016)
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में राजा राममोहन राय का जीवन-दर्शन
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में राजा राममोहन राय का जीवन-दर्शन
Author(s)
डाॅ. प्रिय अशोक
Abstract
राममोहन ने अपने पारिवारिक इतिहास और जीवन के बारे में, अपने इंगलैण्ड के प्रवास काल में अपने एक अंगरेज मित्र को पत्र लिखकर एक संक्षिप्त विवरण दिया था जो ‘लंदन एथेनेयम‘ और बाद में ‘लिटरेरी गजट‘ में प्रकाशित हुआ। सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक, राजनैतिक विषयों पर लिखी पुस्तकों लेखों, समसामयिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों, सरकारी दस्तावेजों और समसामयिक विशिष्ट लोगों के विवरणों के अलावा यही उनका एकमात्र आत्म परिचयात्मक दस्तावेज है। राममोहन में बचपन से ही धार्मिक रूझान था और वे बचपन में अनेक धार्मिक रीतियों और कर्मकांडों का निष्ठापूर्वक पालन करते थे। लेकिन पटना और बनारस की शिक्षा ने उनके युवक मन में हलचल सी पैदा कर दी थी। वे हिन्दू धर्म-दर्शन के प्रश्नों के समाधान में विचार-निमग्न रहने लगे। एक के बाद एक प्रश्न, एक के बाद एक संदेह उनके मन में उठने लगा। ये धार्मिक रूढ़ियां और कर्मकांड, पाखंड और ढकोसले लगने लगे। मूर्तिपूजा क्या है? सच्चा धर्म क्या है? एक ओर मुस्लिम एकेश्वरवाद, सूफी रहस्यवाद और प्राचीन वेद उपनिषदों ने प्रश्न पर प्रश्न खडे़ कर दिये। उनके विचारों में परिवर्तन के लक्षण दिखाई पड़ने लगे। इसी अवधि में अकसर वे अपने पिता से इन प्रश्नों पर वाद-विवाद में उलझने लगे। रमाकांत अपने बेटे के प्रचलित धर्म-विरोधी विचारों को सुनकर दुखी रहने लगे। आगे चलकर पिता-पुत्र में भारी मतभेद पैदा हो गये।
How to cite this article:
डाॅ. प्रिय अशोक. ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में राजा राममोहन राय का जीवन-दर्शन. Int J Appl Res 2016;2(1):840-841.