Vol. 3, Issue 12, Part H (2017)
जैनेन्द्र रचित “सुनीता” की सुनीता रहस्य और दर्शन की एक चर्चित अनबूझ पहेली
जैनेन्द्र रचित “सुनीता” की सुनीता रहस्य और दर्शन की एक चर्चित अनबूझ पहेली
Author(s)
डॉ. ममता रानी अग्रवाल
Abstract
विवाह संस्था तथा वैयक्तिक स्वच्छंदता के अन्तःसंघर्ष की उपज जैनेन्द्र की सुनीता है । सुनीता और उसके पति श्रीकांत दोनों इस बात से सहमत हैंकि विवाह,जो कि कुटुम्ब या समाज कायम रखने के लिए एक रूढ़िवादी संस्था है, निभाने योग्य संस्था है । दोनों की इस सहमति से यह बात स्पष्ट होती है कि विवाह व्यक्ति के भाव की सत्ता नहीं , समाज की सत्ता बनाये रखने के निमित्त संस्था है ।जब व्यक्ति के भाव की सत्ता प्रबल होती है तो जंगल के एकान्त में सुनीता संस्था की सदस्यता से मुक्त हो जाती है,उसका संकल्प टूट जाता है और जब वह श्रीकान्त के पास आती है,तो उस संस्था की मर्यादा और शिष्टाचार के साथ । सुनीता उपन्यास “सुनीता” की सबसे सजीव और मौलिक पात्र है । उसके शील निरूपण का क्रमिक विकास स्पष्ट लक्षित होता है । सुनीता पहले शिक्षित पत्नी है,फिर चिमन पत्नी, फिर पति के मुँह से दूसरे पुरूष की तारीफ सुनकर अवयस्क पत्नी, फिर कौतूहल तथा धीरे-धीरे गुप्त प्रेम की नारी हो जातीहै । फिर पति और पति के मित्र के बीच का द्वन्द का अनुभव करती है । पति से कातर होकर सहारा मांगती है और अन्त में अपने पति द्वारा पत्नी भावना से मुक्त किए जाने पर एकान्त पाते ही दूसरे को नग्न समर्पण भी कर देती है ।
How to cite this article:
डॉ. ममता रानी अग्रवाल. जैनेन्द्र रचित “सुनीता” की सुनीता रहस्य और दर्शन की एक चर्चित अनबूझ पहेली. Int J Appl Res 2017;3(12):569-573.