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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 6, Issue 1, Part D (2020)

‘कोहरा घना है' ग़ज़ल संग्रह में जनवादी चेतना की तलाश

‘कोहरा घना है' ग़ज़ल संग्रह में जनवादी चेतना की तलाश

Author(s)
डॉ० कृतार्थ शंकर पाठक
Abstract
मिथिला अपनी जिन प्रतिभाओं और खूबियों के कारण वैदिक युग से चर्चित, प्रशंसित एवं आदरणीय रही है, उन प्रतिभाओं और खूबियों की सुसंगठित व्यक्तित्व की कड़ी की एक सशक्त इकाई के रूप में, डॉ. ब्रह्मदेव प्रसाद कार्यी की पहचान, उन साहित्यकारों में स्थापित हो गई है, जिनकी अग्रज पीढ़ी के रूप में महान जनवादी साहित्यकार बाबा नागार्जुन आम पाठकों और नागरिकों के बीच अर्द्धशताब्दी पूर्व सुख्याति प्राप्ति कर चुके हैं। डॉ॰ कार्यी की प्रतिभा, दूरदर्शन के सीरियलों में अचानक प्रकट होनेवाले ‘शक्तिमान; और ‘ही-मैन’ सरीखे पहलवानों की तरह नहीं है कि क्षण में प्रकट होकर असंभव को संभव कर, किसी बोतल में बन्द अथवा अदृश्य हो जाया करता है। डॉ॰ कार्यी की साहित्यिक प्रतिभा ढ़ाई-दशक की साधनाओं का ही प्रतिफलन है, जिसके कारण प्रतिवर्ष कम से कम एक पुस्तक, वे पाठकों को देने के लिए, वर्षो पूर्व, वचनबद्ध हो चुके हैं, और आज भी अपने इस वचन को वे निभा रहे हैं। इसी कड़ी में प्रकाषित उनकी 54 ग़ज़लों के संग्रह ‘कोहरा घना है’ को शोध आलेख का विषय बनाया गया है।
साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्यकार जिस मात्रा में समाज को जीता और जागता है, उसी मात्रा में, समाज के द्वारा उस साहित्य को ग्रहण किया जाता है। डॉ॰ कार्यी समाज को निकट से जीने और भोगने का प्रयास ‘कोहरा घना है’ में किया है। अतएव सहजता से उनके उक्त संग्रह में साहित्य में जनवादी प्रवृत्ति दृष्टिगत हो जाती है।
Pages: 290-292  |  555 Views  72 Downloads


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How to cite this article:
डॉ० कृतार्थ शंकर पाठक. ‘कोहरा घना है' ग़ज़ल संग्रह में जनवादी चेतना की तलाश. Int J Appl Res 2020;6(1):290-292.
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