Vol. 2, Issue 1, Part E (2016)
स्वामी शिावानंद व सत्यानंद ने योग को बनाया जनसुलभ
स्वामी शिावानंद व सत्यानंद ने योग को बनाया जनसुलभ
Author(s)
डाॅ. अभिषेक कुमार पाण्डेय
Abstract
योग भारतीय दर्शन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है और हमारे मनीषियों ने इसके माध्यम से मानव-कल्याण का एक ऐसा पथ निर्मित किया है जिसका लोहा आज संपूर्ण विश्व मान चुका है। योग जीवन जीने की सर्वोतम शैली के रूप में प्रतिष्ठित है और चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया, श्री लंका आदि देशों के करोड़ों लोगों ने इसे अंगीकार कर रखा है। योग की व्यावहारिक उपयोगिता इसी से समझी जा सकती है कि आज जब संपूर्ण विश्व कोरोना-महामारी की चपेट से गुजर रहा है तो चिकित्सक भी शरीर की प्रतिरोधक-शक्ति को मजबूत बनाने के लिए योग करने की सलाह लोगों को दे रहे हैं। वैज्ञानिक कसौटी पर यह प्रमाणित हो चुका है कि योग करने से ना सिर्फ श्वसन तंत्र सुदृढ़ होता है बल्कि संपूर्ण मानव शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है। योग हमारे मस्तिष्क को तनावमुक्त-शांतचित्त रखता है और मोटापा, हाई-ब्लड प्रेशर, मधुमेह, मनोरोग, धमनी रोग आदि पर इसके जरिए काबू पाया जा सकता है। वैसे योग-विद्या का मूल उद्देष्य सिर्फ मानव-शरीर को स्वस्थ रखना ही नहीं है। कला और विज्ञान के साथ ही योग अध्यात्म का ऐसा आयाम है जिसके जरिए व्यक्ति अपने-आप से परिचित होता है। स्वयं को समझता है और अपने जीवन के मूल उद्देश्य से परिचित हो जाता है। वस्तुत‘ योग इस धारणा को पुष्ट करता है कि एक स्वस्थ शरीर में ही मानव-मन व आत्मा का वास होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय दर्शन ने मानव जीवन-लक्ष्य के तौर पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी जिस पुरुषार्थ का निर्धारण कर रखा है उसकी प्राप्ति का सुगम मार्ग योग सुझाता है।
How to cite this article:
डाॅ. अभिषेक कुमार पाण्डेय. स्वामी शिावानंद व सत्यानंद ने योग को बनाया जनसुलभ. Int J Appl Res 2016;2(1):329-330.