Vol. 6, Issue 3, Part G (2020)
1857 ईस्वी के क्रांति का ब्रिटिशकालीन भारत पर प्रभाव
1857 ईस्वी के क्रांति का ब्रिटिशकालीन भारत पर प्रभाव
Author(s)
डाॅ. देवेन्द्र कुमार आजाद
Abstract
भारत में 1757 में ब्रिटिश सत्ता स्थापित होने के समय से ही कम्पनी की आर्थिक नीतियों और कुशासन के विरुद्ध समय-समय पर पीड़ित नागरिकों ने लगातार प्रतिरोध या विद्रोह किए, जो भावी संकट के संकेत थे। इन विद्रोहों का नेतृत्व उन्हीं लोगों द्वारा किया गया, जिनके हितों पर अंग्रेजी साम्राज्य द्वारा कुठाराघात किया गया। इन विद्रोहों के अनुयायी, शोषित किसान, दस्तकार, और राजाओं व नवाबों की विघटित सेनाओं के सिपाही थे। ये स्थानीय विद्रोह साधारणतया किसी विशेष विषयों और स्थानीय असंतोष के कारण होते थे और इनका दायरा सीमित हुआ करता था। वे इस कारण सार्वजनिक भी कहे जा सकते हैं कि उस क्षेत्र या राज्य के विभिन्न वर्ग अंग्रेजी राज्य की किसी न किसी नीति से किसी-न-किसी रूप में पीड़ित थे। भारतीय समाज की इस परिस्थिति में भारत में राष्ट्रीय भावना और राष्ट्रीय आंदोलन का जन्म हुआ। भारतीय समाज के नये पुराने विभिन्न वर्गों के साथ ब्रिटिश साम्राज्यवादियों का विरोध था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण विरोध भारत के नवोदित बुर्जुआ वर्ग और ब्रिटिश बुर्जुआ वर्ग के बीच था। भारतीय बुर्जुआ वर्ग के कदम-कदम पर इस ब्रिटिश बुर्जुआ वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही थी। ऐसी स्थिति में भारतीय बुर्जुआ वर्ग ने पहले कुछ प्रशासनिक सुधारों और अधिकारों की माँग उठाई और धीरे-धीरे उसमें वृद्धि होती गई।
How to cite this article:
डाॅ. देवेन्द्र कुमार आजाद. 1857 ईस्वी के क्रांति का ब्रिटिशकालीन भारत पर प्रभाव. Int J Appl Res 2020;6(3):502-504.