Vol. 5, Issue 6, Part D (2019)
भारतीय लोकसंगीत की गौंरवशाली समृद्ध संगीत परंपरा - मैथिल लोकगीत
भारतीय लोकसंगीत की गौंरवशाली समृद्ध संगीत परंपरा - मैथिल लोकगीत
Author(s)
किरण कुमारी
Abstract
लोकजगत में निर्मित, प्रचलित और संरक्षित गीत को लोकगीत की संज्ञा दी गई है। लोकगीत लोक के गीत हैं अर्थात लोक रचित लोक विषयक और लोक में प्रचलित गीत। सांस्कृतिक धरोहर स्वरूप यह श्रुति साहित्य लोक जगत का प्रतिनिधि साहित्य है। लोकगीत जन सामान्य के सामुहिक उल्लास की सहज अभिव्यक्ति है। सृष्टि के आरंभ से ही प्रकृति के उन्मुक्त प्रांगण में कभी स्वतः स्फूर्त आवेश से, कभी अपने देवताओं की संतुष्टि के लिए मनुष्य सहज आनन्द के वशीभूत होकर सामुहिक रूप से गीतों का सृजन करता आया है। इस प्रकार जब गाँवो के लोग किसी खुषी के मौके पर सामुहिक रूप से मिलजुल कर गीत गाते हैं तब उसे लोकगीत का नाम दिया जाता है। ये लोकगीत किसी नियम से बंधे हुए नहीं होते है अपितु परम्परा ही इनका आधार होती है। पारंपरिक रूप से यह गीत प्रकार मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में कन्ठान्तरित होता रहता है। इन लोकगीतों में उस देश या प्रदेश की सांस्कृतिक परम्परा के दर्शन होते है। यह हमारे तत्कालीन समाज की सभ्यता, संस्कृति, उत्थान-पतन, सुख-दुख, हर्ष-विषाद आदि का एक तरह से एलबम हैंै। इनके माध्यम से उस प्रदेश या जनजाति की प्रकृति, कला, संस्कृति, सरलता, सामाजिक स्तर, रीति-रिवाज, धर्म आदि सभी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैंै। हमारे देश में सभी प्रांतो की अपनी-अपनी लोकगीतों की समृद्ध परंपरा है। मैथिली में लोकगीतों का अक्षय भंडार है। मिथिला का परिवेश संगीतमय है। इसकी अपनी सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परंपरा रही है। भारतवर्ष की सभ्यता, प्राचीन संस्कृति और परंपरा को सुरक्षित और अक्षुण्ण रखने में मिथिला का योगदान प्रमुख रहा है।
How to cite this article:
किरण कुमारी. भारतीय लोकसंगीत की गौंरवशाली समृद्ध संगीत परंपरा - मैथिल लोकगीत. Int J Appl Res 2019;5(6):473-474.