Vol. 3, Issue 7, Part O (2017)
वैष्णव भक्तः कवि सूरदास की भक्ति साधना
वैष्णव भक्तः कवि सूरदास की भक्ति साधना
Author(s)
डाॅ. अशोक कुमार गुप्ता
Abstractहिंदी साहित्य में भारतीय साधना के स्वरूप की एक अद्वितीय परंपरा रही है। यज्ञ, तप, ज्ञान, योग और भक्ति के रूप में साधना की अजस्र धारा वैदिक काल से आज तक निरन्तर प्रवाहित हैं। भक्ति सदैव मानव की सहज और सरल प्रकृति के साथ अभिव्यक्त होती रही हैं। श्रीमद्भागवद् गीता में निष्काम भक्ति योग को भगवद् प्राप्ति का सरलतम साधन माना है। इसके पश्चात् भागवत धर्म के अन्तर्गत भक्ति परंपरा का विकास क्रम निरन्तर जारी रहा जो दक्षिण भारत के ‘आलवार’ वैष्णव भक्तों से प्रारंभ होकर सम्पूर्ण उत्तर भारत में फैल गया और यह वैष्णव भक्ति साहित्य का प्राण तत्व बना।
उत्तर भारत में वैष्णव भक्ति को प्रचलित करने में स्वामी रामानंद और स्वामी वल्लभाचार्य का विशेष योगदान रहा। इसी परंपरा में स्वामी वल्लभाचार्य द्वारा प्रवर्तित कृष्ण भक्तिधारा के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि सूरदास हुए जो अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि एवं पुष्टिमार्ग के जहाज कहलाए। वैष्णव भक्त कवि सूरदास ने भक्तिसाधना के लिए प्रेमतत्व को प्रमुखता दी। वे श्रीमद्भागवत में वर्णित अकाम और सकाम दोनों प्रकार की भक्ति को स्वीकारते हैं साथ ही नवधा भक्ति का मनोयोगपूर्वक अपने साहित्य में वर्णन करते हैं। उनकी भक्तिसाधना वैष्णवी है। वे इस क्षेत्र के उच्च कोटि के कवि हैं। भक्ति उनकी रग-रग में समाई हुई है, वे कहते हैं- ‘‘रे मन मूरख जनम गंवायौ। करि अभिमान विषय रस गीध्यौ, स्याम सरन नहिं आयौ।’’ यह स्पष्ट है कि सूरदास वैष्णव भक्त कवियों में अपना शीर्ष स्थान रखते हैं।
How to cite this article:
डाॅ. अशोक कुमार गुप्ता. वैष्णव भक्तः कवि सूरदास की भक्ति साधना. Int J Appl Res 2017;3(7):1064-1065.