Vol. 1, Issue 1, Part D (2014)
आधुनिक साहित्य में संस्कृति के स्वर
आधुनिक साहित्य में संस्कृति के स्वर
Author(s)
डाॅ. अशोक कुमार गुप्ता
Abstract
आधुनिक साहित्य में भावों की विविधता है। इसमें एक ओर प्रेम और संस्कृति की झलक है तो दूसरी ओर घुटन, अकेलापन और संत्रास है। भारतेन्दु युग से अब तक लिखे जाने वाले भारतीय साहित्य में भारतीय संस्कृति के स्वर अत्यधिक मुखरित हूए हैं। इससे पूर्व भी वैश्विक पटल पर हमारी संस्कृति को खूब सराहा गया है। यह संस्कृति अनेक झंझावतों से थपेडे़ खाकर भी अक्षुण्ण रही है क्योंकि इसके अपने सिद्धांत, विचार तथा मूल्य हैं। इसका सबसे प्रवल पक्ष अध्यात्म है जिसे ऋषि-मुनियों, विचारकों एवं साहित्यकारों ने सदैव पुष्ट किया है। भारतेन्दु, द्विवेदी, प्रसाद, प्रेमचंद युगीन साहित्यकारों ने संस्कृति के विविध स्वरों का चित्रण किया है। इस संबंध में भारतेन्दु का निबंध ‘वैष्णवता और भारतवर्ष’ सरदार पूर्णसिंह का ‘आचरण की सभ्यता’ जयशंकर प्रसाद और प्रेमचंद का अधिकांश साहित्य, रामधारी सिंह दिनकर का ‘संस्कृति के चार अध्याय’ आदि उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में रामदरश मिश्र, मिथलेश्वर, असगर वजाहत, हिमांशु जोशी, भरत शर्मा ‘भारत’, सुशील मोहिनी वर्मा, गोपाल बाबू शर्मा, विक्रमसिंह, राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी आदि उल्लेखनीय साहित्यकार हैं जो कमोवेश संस्कृति की रक्षा हेतु साहित्य सृजन कर रहे हैं। यह स्पष्ट है कि हमारी संस्कृति आज भी विश्व की संस्कृतियों से श्रेष्ठ है।
How to cite this article:
डाॅ. अशोक कुमार गुप्ता. आधुनिक साहित्य में संस्कृति के स्वर. Int J Appl Res 2014;1(1):321-323.