Contact: +91-9711224068
International Journal of Applied Research
  • Multidisciplinary Journal
  • Printed Journal
  • Indexed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

IMPACT FACTOR (RJIF): 8.4

Vol. 7, Issue 2, Part C (2021)

पञ्चकर्म चिकित्सा के मूलभूत सिद्धान्त

पञ्चकर्म चिकित्सा के मूलभूत सिद्धान्त

Author(s)
अमर नाथ
Abstract
रोगोत्पत्ति वृद्धिगत दोषों से होना सर्व स्वीकार तथ्य है। इसी स्थापित तथ्य के कारण ही वाग्भट ने श्रोगस्तुदोष वैषम्यम् कह कर संक्षेप में रोगों को परिभाषित किया है। किन्तु यदि सम्यक् विचार करें तो वृद्ध दोष-संचित, प्रकुपित होकर जब विभिन्न स्त्रोतसों में परिभ्रमण करते हुए किसी स्त्रोतस् में स्थान संश्रयित होकर श्दोष-दूष्य-सम्पूर्छनाष् एवं स्त्रोतोदुष्टि कर रोगोत्पत्ति करता है, तभी रोग की संज्ञा प्राप्त होती है। पञ्चकर्म चिकित्सा मुख्यतः दोषपरक है। वृद्धदोष को साम्यावस्था में लाने के दो उपाय संभव है।
1. दोष संशमन
2. दोष निर्हरण।
दोष निर्हरण की उत्कृष्टता इस कारण से है कि इससे रोगोत्पत्ति के मूल कारण दोषों का मूलच्छेदन हो जाता है। जिससे रोग प्रतिकार अपुनर्भव प्रकार का होता है। यही भाव पञ्चकर्म का मुख्य लक्ष्य है। इसके अतिरिक्त पञ्चकर्म, धातुपोषण, अग्निव्यापार, स्त्रोतस् आदि पर प्रभाव डालकर कालजन्य दोष संचयादिक अवस्थाओं में तथा षटक्रिया काल की प्रारम्भिक अवस्थाओं में समुचित रुप से करने से रोगप्रतिषेध (स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणम्) भी करते है।
Pages: 139-141  |  845 Views  368 Downloads


International Journal of Applied Research
How to cite this article:
अमर नाथ. पञ्चकर्म चिकित्सा के मूलभूत सिद्धान्त. Int J Appl Res 2021;7(2):139-141.
Call for book chapter
International Journal of Applied Research
Journals List Click Here Research Journals Research Journals