Vol. 7, Issue 5, Part D (2021)
बैड बैंक की आवश्यकता क्यो?
बैड बैंक की आवश्यकता क्यो?
Author(s)
प्रेम परिहार
Abstract
बैड बैंक एक नवीन आर्थिक अवधारणा है जिसके अन्तर्गत आर्थिक संकट के कारण घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नए बैंक में स्थानांतरित कर दिया जाता है। अमेरिका में 1988 में विश्व का पहला बैड बैंक स्थापित किया था। 1991-92 में स्वीडन ने भी इसी तरह की संस्था की सहायता से आर्थिक चुनौतियों का सामना किया था। 2012 में स्पेन में इस तरह के बैंकों का ही उपयोग किया था। देश में बढ़ते एनपीए के कारण बैड बैंक का विचार सशक्त होता नजर आ रहा है। देश में लगभग सितम्बर 2020 में 7.5 प्रतिशत सकल एनपीए था जो भारतीय रिर्जव बैंक ने सितम्बर 2021 में बढ़कर 13.5 प्रतिशत हो जाने का अनुमान बताया है। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में भी एनपीए की समस्या से निपटने के लिए इसी तरह की संस्था बनाने का सुझाव दिया था। बैड बैंक की अवधारणा को आॅल इंडिया बैंक एम्प्लाइज एसोसिएशन एआईबीईए ने एक बुरा विचार माना है। इसका अर्थ केवल काॅरपोरेट घरानों के डिफाॅल्टरों को बैंक की किताबों से हटाना है। ऋण भुगतान एवं ब्याज चुकाने में देरी होने पर ऋण धारक के खिलाफ आवश्यक कार्रवाही अमल में लायी जानी चाहिए। बैंक के अधिकारियों को इसमें अधिक सतर्कता से कार्य करना चाहिए। बैंक अधिकारियों द्वारा मितव्ययी मानदंडों के आधार पर ऋण देने की आदत को सुधारना चाहिए। जब बैंक सब तरह के प्रयासों से भी ऋणों को वसूलने में असफल हो जाए तब ही इस बैड बैंक को स्थापित करने के विचार को वास्तविकता के धरातल पर लाया जाना चाहिए।
How to cite this article:
प्रेम परिहार. बैड बैंक की आवश्यकता क्यो?. Int J Appl Res 2021;7(5):233-236.