कोविड 19 का आर्थिक वैश्वीकरण पर प्रभाव
Author(s)
डाॅ0 अंकुर अग्रवाल एवं डाॅ0 शिवाली चैहान
Abstract
वैश्वीकरण का सामान्य अर्थ स्थानीय वस्तु या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया से है। जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर क समाज बनाते हैं और एक साथ कार्य सम्पन्न करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक समूह है। वैश्वीकरण का उदय अस्सी के दशक में हुआ था, परन्तु इसकी अवधारणा अति प्राचीन काल से ही मानव समाज में विकसित थी। भूमंडलीकरण जिस बाज़ारवाद की विवेचना करना है उसका आधुनिक स्वरूप भारत में सन् 1991 के आर्थिक उदारीकरण एवं खुले बाज़ार की नीति के तहत सामने आया। इसका उद्देश्य न केवल अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था बल्कि वैश्वीकरण स्तर पर भारत को आर्थिक रूप में विकसित करना भी था। वैश्वीकरण से गरीबी उन्मुलन, बेरोेजगारी में कमी, श्रम में पारदर्शिता एवं अनेक क्षेत्रों में बेहतरी की परिकल्पना की गयी थी। कोविड-19 का आर्थिक वैश्वीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस शोधपत्र का मुख्य उद्देश्य ‘‘कोविड-19 का आर्थिक वैश्वीकरण पर प्रभाव’’ का विश्लेषणकरना है, जिसमें इसके आर्थिक प्रभाव, आयात पर प्रभाव, नकारात्मक प्रभाव एवं सकारात्मक पक्ष सम्मिलित है। आर्थिक वैश्वीकरण पर कोविड-19 का कितना गहरा असर पड़ेगा ये दो बातो पर निर्भर है, प्रथम आने वाले समय में कोविड-19 की समस्या भारत में कितनी गम्भीर है और द्वितीय इस पर भारत में नियंत्रण कब तक पाया जा सकता है? वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सम्बन्ध में किया जाता है, अर्थात व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण। वैश्वीकरण ने पूरे विश्वभर में लोगों के लिए महान अवसरों का निर्माण किया है। इसने समाज में लोगों की जीवन-शैली और स्तर में बड़े स्तर पर बदलाव किया है। यह विकासशील देशों या राष्ट्रों के लिए विकसित होने के बहुत से अवसरों को प्रदान करता है। वैश्वीकरण सकारात्मक और नकारात्मक दोनो रूप से परम्परा, संस्कृति, राजनीतिक व्यवस्था, आर्थिक विकास, जीवन शैली, समृद्धि आदि को प्रभावित करता है।