साहित्य, साहित्यकार और राजनीति: सैद्धान्तिक पक्ष
Author(s)
डॉ. कुलवंत सिंह
Abstract
प्रारूप – समाज मनुष्यों का समूह मात्र नहीं, वह मनुष्य के आपसी कार्य-व्यवहार अर्थात् सामाजिक सम्बन्ध, जो समय और परिस्थिति के अनुसार बनते हैं, का नाम है। इन आपसी सम्बन्धों से समाज की संरचना निर्धारित होती है। समाज में रहता हुआ प्रत्येक व्यक्ति अपनी अवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों से परिवार, वर्ग इत्यादि रूप में विभिन्न प्रकार से सम्बन्ध स्थापित कर, उन्हें विकसित करता है। मनुष्य के इन आपसी सम्बन्धों, उनके प्रतिकर्म को चित्रित करना सजग साहित्यकार का कलात्मक कार्य है। अन्य व्यक्तियों की तरह साहित्यकार भी समाज का एक अंग है, लेकिन वह अपनी बुद्धि, ज्ञान, विवेक, सहृदय भावनाओं और कल्पना शक्ति के कारण उन से अलग अपना ‘विशेष’ स्थान रखता है। वह अपना सम्बन्ध किसी विशेष जाति, धर्म या व्यक्ति से न रख सम्पूर्ण समाज को बिना किसी डर या भय के सूक्ष्म दृष्टि से देखता, परखता और उसकी सार्थक, सफल अभिव्यक्ति करता है। समाज में घटित प्रत्येक अनुकूल-प्रतिकूल सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति को देख, महसूस कर, अनुभव की कसौटी पर परखने, विश्लेषण करने के बाद समाज का चित्रण इस प्रकार करता है कि वह कैमरे द्वारा लिया गया चित्र न हो, साहित्यिक चित्रण होता है। दूसरे शब्दों में, समाज के प्रत्येक पहलु को देखने-परखने के बाद, अपने असीम ज्ञान, कल्पना और अनुभवों द्वारा किया गया समाज का वास्तविक वर्णन साहित्य कहलाता है।
How to cite this article:
डॉ. कुलवंत सिंह. साहित्य, साहित्यकार और राजनीति: सैद्धान्तिक पक्ष. Int J Appl Res 2021;7(7):119-125.