Vol. 7, Issue 7, Part E (2021)
क्षेत्रीय दलों का उदय और राजनीति में उनका बढ़ता हुआ वर्चस्व
क्षेत्रीय दलों का उदय और राजनीति में उनका बढ़ता हुआ वर्चस्व
Author(s)
डॉ. बीर बहादुर यादव
Abstract
लोकतंत्रात्मक व्यवस्था के आधारभूत स्तम्भ राजनीतिक दल ही हैं। इस सत्य से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है परन्तु दलीय व्यवस्था अपने अनेक रूपों में राजनीतिक व्यवस्था को अनेक प्रकार से प्रभावित कर रही है। कहीं यह लोकतंत्र का पोषण करती है तो कहीं उसकी जड़ों पर कुठाराघात। परन्तु यह व्यवस्था सर्वदेशीय है, इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता। भारतीय राजनीति भी इसका अपवाद नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व के राजनीतिक आन्दोलनों के सूत्राधार राजनीतिक दल ही थे, तो स्वतंत्रता के बाद भी उन्हीं का बोलबाला है। आज की भारतीय राजनीति इनके बिना अधूरी ही नहीं, असम्भव भी है। वर्तमान भारतीय राजनीति के क्षितिज पर एक नये घटनाक्रम का आविर्भाव उन्नीससों नब्बे के दशक की एक ऐसी घटना है जो भविष्य को गहराई तक प्रभावित करेगी और यह घटना है क्षेत्रीय दलों का उदय और राजनीति में उनका बढ़ता हुआ वर्चस्व। वस्तुस्थिति तो यह है कि आज तक कथित राष्ट्रीय राजनीतिक दल भी इन क्षेत्रीय दलों की बैसारिवयों के सहारे ही चल पाते हैं, अन्यथा वे अपंग, असहाय मात्र प्रतीत होते हैं।
How to cite this article:
डॉ. बीर बहादुर यादव. क्षेत्रीय दलों का उदय और राजनीति में उनका बढ़ता हुआ वर्चस्व. Int J Appl Res 2021;7(7):381-384.