Vol. 3, Issue 11, Part F (2017)
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता - इक्कीसवीं शताब्दी के संदर्भ में
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता - इक्कीसवीं शताब्दी के संदर्भ में
Author(s)
डाॅ. सीमा सिंह
Abstract
गुटनिरपेक्षता की नीति का अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। 1945 में युद्ध के पश्चात यह बात साफ हो चुकी थी कि अमेरिका और सोवियत संघ का कद और उनकी शक्ति किसी भी अन्य बड़ी शक्ति से कहीं अधिक है और निकट भविष्य में इनके बराबर पहुंचने का सपना कोई दूसरी बड़ी शक्ति नहीं देख सकती। इन्हें महाशक्ति का दर्जा दिलाने में परमाणु अस्त्रों ने भी लगभग निर्णायक भूमिका निभाई। युद्धोत्तर विश्वव्यवस्था दो सैनिक गुटों में बंट गई थी जिसका नेतृत्व अमेरिका और सोवियत संघ कर रहे थे। भारत के नेहरू, युगोस्लाविया के टीटो, मिस्र के नासिर, घाना के एनक्रूमा के नेतृत्व में नवोदित स्वतंत्र राष्ट्रों ने दोनों गुटों से दूर रहने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संगठन किया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने की एक स्वतंत्र विदेश नीति का उपकरण है। गुटनिरपेक्षता पर आधारित विदेश नीतियों तथा गुटनिरपेक्ष आंदोलन का विकास शीत युद्ध के संदर्भ में हुआ था। यह आंदोलन आरंभ में मूल रूप से राजनीतिक प्रकृति का था आगे चलकर इसने आर्थिक समस्याओं पर भी ध्यान देना आरंभ कर दिया। जब शीत युद्ध समाप्त हुआ तब एक महत्वपूर्ण प्रश्न उजागर हुआ कि उत्तर शीत युद्ध काल में गुटनिरपेक्षता का क्या भविष्य होगा। वास्तविकता तो यह है 21वीं सदी के पहले चरण में ऐसी जटिल चुनौतियां उभर रही हैं जिनके मुकाबले गुटनिरपेक्ष देशों को और अधिक सचेत और सावधान होने की जरूरत है। मानवाधिकारों की रक्षा हो अथवा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा, पर्यावरण का संरक्षण हो या आधुनिकतम टेक्नोलॉजी का समानतापूर्ण प्रसार, इनमें से प्रत्येक की सफलता गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सक्रियता पर ही निर्भर नजर आती है।
How to cite this article:
डाॅ. सीमा सिंह. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता - इक्कीसवीं शताब्दी के संदर्भ में. Int J Appl Res 2017;3(11):398-401.