Abstractगंगा को हिन्दू धर्मशास्त्रों में नदी की अपेक्षा एक देवी के रूप में वर्णित किया गया है साथ ही जीवनदायिनी एवं मोक्षदायिनी के रूप में प्रतिरूपित किया गया है। गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथायें जुडी हुई है इन्हीं पौराणिक कथाओं के कारण गंगा को विभिन्न 108 नामों से जाना जाता है। कालीदास, तुलसीदास, वाल्मिकी, व्यास इत्यादि द्वारा रचित महाकाव्यों, कविताओं से अनुप्रमाणित गंगा नदी पर पौराणिक, साहित्य, वेदोंक्तियाँ, कथा, महाकाव्य, लोकोक्तियाँ भी सुशोभित हैं।
भारतवासियों के लिये विशेषकर हिन्दुओं के लिये गंगा सिर्फ एक नदी ही नहीं बल्कि एक माँ, एक देवी, एक परम्परा, एक संस्कृति और भी बहुत कुछ है, प्रत्येक हिन्दू धर्माम्बली यह प्रत्याशा रखता है कि जीवनकाल में कम से कम एक बार गंगा स्नान अवश्य करंे तब ही उसका जीवन सफल है, धार्मिक अनुष्ठान सम्पादित करने के लिये गंगाजल का होना अनिवार्य है पवित्र गंगाजल हर हिन्दू के घर के मन्दिर में माँ गंगा की प्रतिमूर्ति के रूप स्थापित किया जाता है, क्योंकि गंगा को माँ की तरह पूज्यनीया, पोषणदात्री इत्यादि उपनामों से भी प्रतिरूपित किया जाता है, अर्थात गंगा जल से पवित्र एवं अपवित्रता से मुक्ति सम्बन्धी सभी कृत्य सम्पादित किये जाते है। सम्भवतः इसी कारण इस महानदी को प्रदूषण मुक्त रखने के लिये सबसे अधिक ध्यान दिया जा रहा है। गंगाजलादि प्राकृतिक साधनों की शुचिता, स्वच्छता पर मानवीय काया ही नहीं बल्कि उसके मन, बुद्धि एवं अहंकार की पवित्रता भी निर्भर करती है, जल चाहे भूतल पर हो या भू-गर्भ स्थित उसके प्राकृतिक स्वरूप में किसी प्रकार का हस्तक्षेप सम्पूर्ण प्रकृति के जीव जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिये संकटापन्न हो सकता है। यही कारण है आज जनमानस में पौराणिक एवं पर्यावरणीय चेतना को क्रियान्वित करने की अति आवश्यकता है।