Vol. 1, Issue 1, Part E (2014)
अभिनवगुप्त का रस-सिद्धान्त
अभिनवगुप्त का रस-सिद्धान्त
Author(s)
डॉ. अशोक कुमार दुबे
Abstractभारतीय रस-चिन्तन की परम्परा में आचार्य अभिनवगुप्त का स्थान महत्वपूर्ण है। जिन्होंने इस सिद्धान्त में अभिव्यक्ति-वाद की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए उसे व्यापक स्वरूप प्रदान किया है। वस्तुतः रस शब्द का बीजारोपण वेद से हुआ है। वहां रस के लिए स्वादु, मधु, पान आदि का वाक् और रूद्र के लिए प्रयोग किया गया है।
अभिनवगुप्त रस को अलौकिक स्वीकार किये हैं और इसकी अलौकिकता की सिद्धि भी करते हैं। लोक में पायी जाने वाली वस्तु दो प्रकार की होती है-एक कार्यरूप, दूसरा ज्ञान्यरूप। रस लौकिक वस्तु से परे कोई अलौकिक तत्व ही है-
‘‘अलौकिक चमत्कारी श्रृंगारिको रसः।’’
How to cite this article:
डॉ. अशोक कुमार दुबे. अभिनवगुप्त का रस-सिद्धान्त. Int J Appl Res 2014;1(1):421-424.