Vol. 1, Issue 2, Part D (2015)
आचार्य विश्वनाथ कविराज और साहित्यदर्पण
आचार्य विश्वनाथ कविराज और साहित्यदर्पण
Author(s)
डॉ. अशोक कुमार दुबे
Abstractसाहित्यदर्पणकार अलंकारिक चक्रवर्ती महापात्र आचार्य विश्वनाथ कविराज अपूर्व विद्या विभूषित व्यक्तित्व थे। आप त्रिकलिंग गजपति साम्राज्य के सान्धिविग्रहिक थे। आप में अपूर्व कारयित्री एवं भावयित्री प्रतिभा थी। साथ ही राज्याश्रित जीवनशैली के कारण जीवन में स्वाध्याय का भरपूर अवसर आपको उपलब्ध हो सका। आपको साहित्य-समुद्र का कर्णधार कहा गया है। ध्वनि प्रस्थापन परमाचार्य परम्परा व्याख्यान की पंक्ति में आपका स्थान प्रथम है। आप अष्टादश भाषा के ज्ञाता रहे हैं। फलतः आप द्वारा सूत्र ‘साहित्यदर्पण’ संस्कृतसाहित्य समाज के लिए अनिवार्य एवं तत्वप्रदायक महाग्रन्थ है।
पहली बार आचार्य विश्वनाथ कविराज ने संस्कृत साहित्य के मूल प्रयोजन एवं प्रतिपाद्य का उल्लेख किया। आपके अनुसार संस्कृतसाहित्य का मुख्य प्रयोजन मनुष्य हेतु प्रवृति और निवृत्ति मार्ग को पहचानना है। साहित्य मनुष्य के लिए केवल आनन्दप्रदायक माध्यम मात्र नहीं है। साहित्य के द्वारा मनुष्य अपना चरित्र और परम प्राप्तव्य दर्पण की तरह देख सकता है। अतः साहित्य का मुख्य कार्य प्रवृति और निवृत्ति के स्वरूप को दर्पणविद् उद्भाषित करना है। हो सकता है अनेक विद्वान् एवं मौलिकग्रन्थकार सात्यि के इस प्रयोजन से सहमत न हों, परन्तु आचार्यविश्वनाथ कविराज का यह वक्तव्य वैदिक परक्परा के अनुरूप है। वैदिक परम्परा के अनुसार मनुष्य का जीवन चतुवर्गफलप्राप्ति हेतु विधाता द्वारा उपलब्ध कराया गया वरदान है। शास्त्र का कार्य प्रवृति और निवृत्ति को बतलाना है। संस्कृत साहित्य इससे बँधा है। अतः संस्कृत साहित्य पर भी यह सिद्धान्त लागू होता है-
प्रवृतिर्वा निवृत्तिर्वा नित्येन कृतकेन वा।
पुंसां येनोपदिश्येत तच्छास्त्रमिति कथ्यते।।
How to cite this article:
डॉ. अशोक कुमार दुबे. आचार्य विश्वनाथ कविराज और साहित्यदर्पण. Int J Appl Res 2015;1(2):281-285.