Abstractभूमंडलीकरण की प्रक्रिया में नयी-नयी प्रेरणाएँ, परिकल्पनाएँ एवं प्रवृत्तियाँ, मानव समाज के साथ-साथ सभ्यता, संस्कृति एवं भाषा को आंदोलित कर रही है। भूमंडलीकरण की आंधी में जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी के आस्तित्व पर प्रहार हो रहा है। हमारे सम्मुख प्रश्न यह है कि बहुराष्ट्रीय व्यावसायिकता की दौड़ में हम हिन्दी की अस्मिता कैसे संरक्षित रखें ?
आधुनिक समय में हिन्दी के सामने जनसंचार माध्यम द्वारा बाजारवाद, समाजवाद, संस्कृतिवाद, सम्प्रदायवाद, भावशून्यता एवं भाषावाद की चुनौतियाँ खड़ी हैं। आज जनसंचार के जितने माध्यम हैं उतने ही हिन्दी के रूप हैं - संस्कृतनिष्ठ हिन्दी, साहित्यिक हिन्दी, प्रयोजनमूलक हिन्दी, अवधी, बघेली एवं मालवी मिश्रित हिन्दी, एवं भारतीय विदेशी भाषाओं से संबंधित हिन्दुस्तानी हिन्दी। आज हिन्दी विभिन्न क्षेत्रों जैसे प्रशासन, विधि, चिकित्सा, न्यास, शिक्षा तथा तकनीकी एवं जनसंचार के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रयुक्त हो रही है। दृश्य की प्रस्तुति भी अपने आप में एक भाषा है। संस्कृति, परिवेश एवं इतिहास को केवल शब्दों से नहीं, बल्कि उसकी दृश्य योजना से भी सार्थक अभिव्यक्ति मिलती है। ई-मेल और इंटरनेट की भाषा, कम्प्यूटर और कम्प्यूनिकेशन की भाषा हिन्दी होने पर वह अन्तर्राष्ट्रीय पहचान की हकदार हो जाती है।